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देसी आयुर्वेदिक दवाएं और सप्‍लीमेंट्स – क्‍या ये सुरक्षित हैं

Posted On Jul 07, 2020

4 Min Read

Dr. Lovkesh Anand

Consultant- Medical Gastroenterology & Hepatology

Dwarka - Delhi

लिवर हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो न केवल पाचन के लिए बल्कि हमारे शरीर में अधिकांश दवाओं के चयापचय के लिए भी जिम्मेदार है। आनुवंशिक और पर्यावरणीय जोखिम वाले कारकों की वजह से, अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में दवाएं लिवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे लिवर को एक हद तक चोट पहुंच सकती है, जिसे सामूहिक रूप से दवा-प्रेरित लिवर की चोट (डी.आई.एल.आई.) कहा जाता है। डी.आई.एल.आई. की वजह से लिवर में बिना किसी लक्षण की समस्‍याओं से लेकर लिवर फ़ेल होने और यहां तक ​​कि मौत होने तक की स्थिति पैदा हो सकती है। अध्ययनों से पता चला है क‍ि एंटीबायोटिक दवाओं और एंटीट्यूबरकुलोसिस (एंटी-टीबी) दवाओं के अलावा, विभिन्न रजिस्ट्रियों में कॉम्प्लिमेंटरी और वैकल्पिक चिकित्सा (सीएएम) लिवर को सबसे ज्‍़यादा प्रभाव‍ित करने वाली दवाएं हैं।

हेपेटाइटिस, सिरोसिस, घातक और पुराना कोलेंगाइटिस, संवहनी घाव, या लिवर फ़ेल होना भी शामिल है। इस वजह से लिवर ट्रांसप्‍लांट की ज़रूरत भी पड़ सकती है।

स्थानीय दुकानों या इंटरनेट से खरीदी गई आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं के उपयोग से लिवर को पहुंचने वाली चोट की रिपोर्ट प्रकाशित या प्रस्तुत की गई हैं। अमेरिका के एक हालिया अध्ययन में, यह पाया गया कि ज्‍़यादातर सामग्रियों की लेबलिंग गलत की गई थी, खास तौर पर वजन घटाने और बॉडी बिल्डिंग में जांचे गए 50% से अधिक उत्पादों के मामले में। इसके अलावा, हर्बल उपचार की लिवर में विषाक्‍तता बढ़ने के कुछ खास जोखिम भी होते हैं, जैसे: पौधे की गलत पहचान, औषधीय पौधे का गलत हिस्‍सा चुनना, इस देसी उत्पाद की प्रोसेसिंग के लिए अपर्याप्त भंडारण, प्रोसेसिंग के दौरान मिलावट और अंतिम उत्‍पाद की लेबलिंग सही न होना। एक और कठिनाई यह है कि हर्बल दवा बनाने का असल फ़ॉर्मूला अस्पष्ट रह सकता है, खास तौर पर उन उत्‍पादों में जिनमें कई सारी हर्बल सामग्रियों की ज़रूरत पड़ती है। एक सुरक्षित हर्बल उत्पाद भी विषाक्त यौगिकों से दूषित हो सकता है, जिससे लिवर में विषाक्‍तता की समस्‍या हो सकती है। कुछ अध्ययनों में, आयुर्वेदिक दवाओं में काफ़ी मात्रा में आर्सेनिक, मरकरी और लेड भी पाया गया है, जिनसे मरने की संभावना काफ़ी ज्‍़यादा होती है। अध्‍ययन में, 70% नमूनों में अत्यधिक अस्थिर कार्बनिक यौगिकों भी मिले और लिवर में चोट पहुंचने के वैज्ञानिक लिंक का भी पता चला।

अब तक, लिवर को विषाक्त करने वाली 100 से अधिक औषधीय दवाओं के बारे में पता चल चुका है। कई हालिया रिपोर्ट में एनाबोलिक एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड और डायटरी सप्‍लीमेंट्स की वजह से लिवर में होने वाली विषाक्‍तता का पता चला है, जैसे ऑक्सीई-लाइट (वजन घटाने और मांसपेशियों के निर्माण के लिए), हाइड्रॉक्सीकट (ग्रीन टी, इफ़ेड्रा, कैफ़ीन, कार्निटाइन, क्रोमियम), लिनोलिक एसिड और अस्निक एसिड का अन्य उत्पाद (योहिमबाइन, कैफ़ीन, डाइहाइड्रोथायरॉन, नोरेफ़ेड्राइन)। एल्‍कोहलिक लिवर रोग के रोगियों में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवा लिव 52 की भूमिका का आकलन करने वाले एक अध्ययन में पाया गया है कि लिव 52 से उपचारित रोगियों में लिवर की समस्‍या और बचने की स्थिति में सुधार नहीं हुअ और उन्नत सिरोसिस वाले रोगियों में इसके उपयोग से मृत्यु दर में वृद्धि हुई। इस अध्ययन की वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका में लिव 52 पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगा दिया गया; हालांकि, यह वर्तमान में भारतीय रोगियों के बीच भारी उपयोग किया जाता है। 

सी.ए.एम.-डी.आई.एल.आई. से संबंधित रोगी में आम तौर पर खराब परिणाम आए हैं, जिनमें क्रोनिक लिवर की बीमारी वाले लोगों में मृत्यु दर बहुत अधिक है। इस प्रकार, भारतीय आबादी को तुरंत शिक्षित करने की ज़रूरत है कि सी.ए.एम के भी दुष्‍प्रभाव होते हैं। इसी बीच, उद्योग और उपयुक्त सरकारी एजेंसियों को कड़े नियम बनाने होंगे, गुणवत्ता परीक्षण और उत्पादन मानक भी स्‍थापित करने होंगे।

               

Dr Lovkesh Anand

Consultant- Department of Gastroenterology

डॉ. लवकेश आनंद

कंसल्‍टेंट – गैस्‍ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग

 

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